Class 8 Hindi Vasant Chapter 9 कबीर की साखियाँ. all imp MCQ
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कबीर दास अगले दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि अगर भगवान की सच्ची भक्ति करनी है तो सांसारिक माया मोह के साथ-साथ अपने मन की चंचलता का त्याग करना आवश्यक है। तभी भगवान की प्राप्ति हो सकती है।
कबीर दास
की साखियाँ दोहा छंद में लिखी गई हैं।
कबीर दास जी ने लगभग अपनी सभी रचनाओं में सांसारिक माया मोह , बाह्य आडंबरों , अंधविश्वास व जाति -पाँती के भेदभाव से इंसान को दूर रहने का संदेश दिया है।
1.“कबीर की साखियां” के पहले दोहे में कबीरदास जी सीधे-सीधे कहते हैं कि इंसान को उसके जाति , धर्म , बाह्य रंगरूप व वेशभूषा के आधार पर नहीं बल्कि उसके ज्ञान व सद्गुणों से ही पहचाना जाना आवश्यक है।
2.दूसरे दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य और संयम से काम लीजिए। अगर आपको कोई अपशब्द भी कहता है या कोई अप्रिय बात भी कहता है तो आप पलटकर उसका जवाब कभी मत दीजिए। क्यों एक अपशब्द ही अनेक अपशब्दों का सिलसिला बनाता हैं।
3.अगले दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि अगर भगवान की सच्ची भक्ति करनी है तो सांसारिक माया मोह के साथ-साथ अपने मन की चंचलता का त्याग करना आवश्यक है। तभी भगवान की प्राप्ति हो सकती है।
4.आगे कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में हर प्राणी का अपना अलग-अलग महत्व है चाहे वह छोटा हो या बड़ा। इसीलिए हमें सब के मान सम्मान को बनाए रखना चाहिए। कभी भी किसी का अपमान या अवहेलना नहीं करनी चाहिए।
5.और अंत में कबीरदास जी कहते हैं कि अगर आपका मन शांत है। आपके मन में कोई अहंकार की भावना नहीं है तो इस संसार में आपका कोई दुश्मन नहीं हो सकता। सब आपसे दया व प्रेम की भावना ही रखेंगे।
साखी 1.
जाति न पूछो साधु की , पूछ लीजिए ज्ञान।
मेल करो तरवार का , पड़ा रहन दो म्यान।
भावार्थ
कबीरदास जी कहते हैं कि जिस तरह तलवार की असली पहचान उसकी म्यान (तलवार रखने का कवर) को देखकर नहीं बल्कि तलवार की तेज धार को देखकर की जाती है। उसी प्रकार साधु की असली पहचान उसकी जाति से नहीं बल्कि उसके ज्ञान से होती है।
यानि तलवार को कितने ही सुंदर म्यान में क्यों न रखा जाय। अगर उसकी धार तेज नहीं होगी तो वह तलवार किसी काम की नहीं हैं। इसी तरह सिर्फ उच्च कुल में जन्म लेने व बाहर से साधु का चोला पहन लेने से कोई व्यक्ति ज्ञानी व साधु नहीं हो जाता है।गरीब या निम्न कुल में जन्मा व्यक्ति भी ज्ञानवान , विद्वान और सद्गुणों को धारण कर सकता हैं और साधु हो सकता है। इसीलिए व्यक्ति की पहचान सदा उसके ज्ञान से ही की जानी चाहिए।
साखी 2.
आवत गारी एक है , उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए , वही एक की एक।
भावार्थ
प्रश्न 4.
मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है ?
उत्तर-
यह भावार्थ अंतिम साखी में है।
जग में बैरी कोई नहीं , जो मन शीतल होय।
साखी 3.
माला तो कर में फिरै , जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै , यह तौ सुमिरन नाहिं।
भावार्थ
इन पंक्तियों में कबीरदास जी ढोंगी और पाखंडी लोगों पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो माला हाथ में लेकर उनके मोती फेरते (माला जपते रहते हैं ) रहते हैं। और मुख से हमेशा भगवान का नाम लेते रहते हैं। लेकिन असल में उनका मन दसों दिशाओं में (सांसारिक चीजों के पीछे) भटकता रहता है। यानि सांसारिक माया मोह के बंधन में लगा रहता है। इसे तो भगवान की सच्ची भक्ति नहीं कह सकते है।
यानि कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान की सच्ची भक्ति न तो माला फेरने में हैं और न साधु-संतों जैसा दिखने में। बल्कि सारे सांसारिक बंधनों को छोड़कर एकांत , शांत व निर्मल मन से अपने आप को सिर्फ भगवान के चरणों में समर्पित कर देना ही सच्ची भक्ति है। सच्ची भक्ति के लिए किसी सांसारिक आडंबर की जरूरत नहीं हैं।
साखी 4.
कबीर घास न नींदिए , जो पाऊँ तलि होइ ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं , खरी दुहेली होइ ।
भावार्थ
उपरोक्त साखी में कबीरदास जी कहते हैं कि कभी भी अपने पैर के नीचे आने वाले छोटे-छोटे घास के तिनकों तथा धूल के कणों को कम आंकने की गलती मत करना। क्योंकि कभी यही धूल के कण और घास का तिनका हवा के साथ उड़ कर आपकी आंख में चला जाएगा , तो वह आपको बहुत अधिक कष्ट देगा।
यानि संसार की हर छोटी से छोटी चीज का भी अपना एक अलग महत्व है। इसीलिए हमें उनके महत्व को कम आंकने के बजाय उनका सम्मान करना चाहिए।
साखी 5.
जग में बैरी कोइ नहीं , जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे , दया करै सब कोय।
भावार्थ
उपरोक्त साखी में कबीरदास जी कहते हैं कि अगर आपका मन शांत है तो दुनिया में आपका कोई भी दुश्मन नहीं हो सकता और मन को शांत करने के लिए आप अपने अहंकार को त्याग दीजिए। जब आप अपने अहंकार को त्याग देंगे तो सब आप से दया का भाव रखेंगे।
यानी जब आप अपने अहंकार को त्याग देंगे और अपने मन को शांत रखेंगे , तो आपका इस दुनिया में कोई भी दुश्मन नहीं हो सकता हैं। और जब कोई दुश्मन नहीं होगा तो सब आपसे दया और प्रेम का भावना अपने आप ही रखेंगे।
प्रश्न 1.
“तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं”। उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कबीरदास जी यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य की असली पहचान उसके धैर्य , ज्ञान व सद्गुणों से करनी चाहिए , न कि उसकी जातिपाँति , धर्म व बाहरी पहनावे से। जैस तेज धार ही तलवार की असली पहचान हैं ।उसी प्रकार साधु का परोपकारी , दयालु , विनम्र व सहनशील स्वभाव ही उसकी असली पहचान हैं।
प्रश्न 2.
पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है “मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं” के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर-
उपरोक्त साखी में कबीर दास जी कहना चाहते हैं कि जब तक आपका मन सांसारिक माया मोह के पीछे भटकता रहेगा। तब तक सिर्फ हाथ में माला लेकर हर वक्त प्रभु का नाम जपने से जीवन सार्थक नहीं हो सकता हैं।
अगर आपने संसार के सारे बंधनों को तोड़ दिया और सारी सांसारिक चीजों का मोह छोड़ दिया। और एकाग्र चित्त होकर अपना जीवन भगवान के चरणों पर समर्पित कर दिया। तभी आपका जीवन सार्थक होगा।
प्रश्न 3.
कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कबीर दास जी कहते हैं जिस घास के तिनके को हम अपने पैरों के नीचे रौंदते चले जाते हैं। वह भी कभी-कभी हवा के झोंके के साथ उड़ कर हमारी आंख में चला जाए , तो वह हमें असह्य दर्द देता है। यानी संसार में घास के तिनके का भी अपना एक विशेष महत्व होता है।
कबीरदास जी ने यहां पर घास के तिनके की तुलना उन व्यक्तियों से की है जो समाज में निम्न या आर्थिक रूप से कमजोर तबके से हैं या परेशानियों से धिरे हुए है।
उनका कहना हैं कि इस दुनिया में हर प्राणी का अपना-अपना महत्व है। इसीलिए कभी भी किसी को कमजोर व तुच्छ समझकर उसकी अवहेलना या अपमान नहीं करना चाहिए। हमें सबका सम्मान करना चाहिए।
प्रश्न 4.
मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है ?
उत्तर-
यह भावार्थ अंतिम साखी में है।
जग में बैरी कोई नहीं , जो मन शीतल होय।
या आपा को डारि दे , दया करै सब कोय।।
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