CBSE CLASS 10 BOARD 2024 ALL IMPORTANT QUESTIONS

Image
CBSE  CLASS 10   BOARD  2024 ALL IMPORTANT  QUESTIONS  COVERS ALL TOPICS .PRACTICE AND GET FUL MARKS   CBSE Class 10 English Grammar Important MCQs - Gap Filling Choose the correct options to fill in the blanks to complete the note about the wangala Festival of Meghalaya.  1. The Wangala (i) __________ festival for the Garo in Meghalaya, Assam and Nagaland. It is a postharvest festival (ii) __________ the end of the agricultural year. It is popularly known as ‘The Hundred Drums’ festival. During the signature dance, the leading warrior (iii) __________ with synchronised 7 dance steps and specific hand-head movements.  (i) (a) is important  ( b) are an important  (c) was the important  (d) is an important  (ii) (a) being celebrated for marking ( b) celebrated to mark ( c) celebrate to mark  (d) being celebrated for mark  (iii) (a) leads the youngsters ( b) lead the youngsters ( c) was leading the youngsters  (d) had led the youngsters  Answer: (i)  (d) is an important (ii) (b) celebrate

कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) | Kabir Das ki Sakhi in Hindi Class 9 | Full Explanation

 

कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) | Kabir Das ki Sakhi in Hindi Class 9 | Full Explanation

by krishan kumar


                                                         






कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) | Kabir Das ki Sakhi in Hindi Class 9

          आज हम आप लोगों को क्षितिज भाग 1 कक्षा-9 पाठ-9 (NCERT Solution for class-9 kshitij bhag-1 chapter – 9) कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) काव्य खंड (Kabir Das ki Sakhi and Sabad)  के भावार्थ के बारे में बताने जा रहे है


इस पाठ में कबीर द्वारा रचित सात सखियों का संकलन है। इनमें प्रेम का महत्त्व, संत के लक्षण, ज्ञान की महिमा, बाह्याडंबरों का विरोध, सहज भक्ति का महत्त्व, अच्छे कर्मों की महत्ता आदि भावों का उल्लेख हुआ है। इसके अलावा पाठ में कवि के दो सबद (पदों) का संकलन है, जिसमें पहले सबद में बाह्याडंबरों का विरोध तथा अपने भीतर ही ईश्वर की व्याप्ति का संकेत है। दूसरे सबद में ज्ञान की आँधी रूपक के सहारे ज्ञान के महत्व का वर्णन है। कवि का मानना है कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी सभी दुर्बलताओं पर विजय पा सकता है। 

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।

मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं। 1। 

शब्दार्थ : मानसरोवर-तिब्बत में एक बड़ा तालाब, मनरूपी सरोवर अर्थात् हृदय । सुभर-अच्छी तरह भरा हुआ। हंस-हंस पक्षी, जीव का प्रतीक । केलि-क्रीड़ा । कराहि-करना । मुक्ताफल-मोती, प्रभु की भक्ति । उड़िउड़कर । अनत-अन्यत्र, कहीं और। जाहि-जाते हैं। 

भावार्थ : मानसरोवर स्वच्छ जल से पूरी तरह भरा हुआ है। उसमें हंस क्रीड़ा करते हुए मोतियों को चुग रहे हैं। वे इस आनंददायक स्थान को छोड़कर अन्यत्र नहीं जाना चाहते हैं। आशय यह है कि जीवात्मा प्रभुभक्ति में लीन होकर मन में परम आनंद सुख लूट रहे हैं। वे स्वच्छंद होकर मुक्ति का आनंद उठा रहे हैं। वे इस सुख (मुक्ति) को छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं जाना चाहते 

प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।

प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।

शब्दार्थ : प्रेमी-प्रेम करने वाले (प्रभु-भक्त)। फिरों-घूमता हूँ। होइ-हो जाता है। 

 भावार्थ : कवि कहता है कि मैं ईश्वर प्रेमी अर्थात् प्रभु-भक्त को ढूँढ़ता फिर रहा था पर अहंकार के कारण मुझे कोई भक्त न मिला। जब दो सच्चे प्रभु-भक्त मिलते हैं तो मन की सारी विष रूपी बुराइयाँ समाप्त हो जाती हैं तथा मन में अमृतमयी अच्छाइयाँ आ जाती हैं। 

हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।

स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।3। 

शब्दार्थ : हस्ती-हाथी। सहज-प्राकृतिक समाधि । दुलीचा-कालीन। स्वान-कुत्ता। भूँकन दे-भौंकने दो। झख मारि –समय बरबाद करना। 

भावार्थ : कवि ज्ञान प्राप्ति में लगे साधकों को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम ज्ञानरूपी हाथी पर सहज समाधि रूपी आसन (कालीन) बिछाकर अपने मार्ग पर निश्चिंततापूर्वक चलते रहो। यह संसार कुत्ते के समान है जो हाथी को चलते देखकर निरुद्देश्य भौंकता रहता है। अर्थात् साधक को ज्ञान प्राप्ति में लीन देखकर दुनियावाले अनेक तरह की उल्टी-सीधी बातें करते हैं परंतु उसे दुनिया के लोगों की निंदा की परवाह नहीं करनी चाहिए। 

पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।

निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान। 4। 

शब्दार्थ : पखापखी-पक्ष और विपक्ष। कारनै-कारण। भुलान-भूला हुआ। निरपख-निष्पक्ष । भजै-भजन, स्मरण करना। सोई-वही। सुजान-चतुर, ज्ञानी, सज्जन। 

भावार्थ : लोग अपने धर्म, संप्रदाय (पक्ष) को दूसरों से बेहतर मानते हैं। वे अपने पक्ष का समर्थन तथा दूसरे की निंदा करते हैं। इसी पक्ष-विपक्ष के चक्कर में पड़कर वे अपना वास्तविक उद्देश्य भूल जाते हैं। जो धर्म-संप्रदाय के चक्कर में पड़े बिना ईश्वर की भक्ति करते हैं वही सच्चे ज्ञानी हैं। 

हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।

कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ ।5।

शब्दार्थ : मूआ-मर गया। सो जीवता-वही जीता है। दुहुँ-दोनों। निकटि-पास, नजदीक । जाइ-जाता है। 

भावार्थ : निराकार ब्रह्म की उपासना की सीख देते हुए कवि कहता है कि हिंदू राम का जाप करते हुए तथा मुसलमान खुदा की बंदगी करते हुए मर मिटे तथा आने वाली पीढ़ी के लिए कट्टरता छोड़ गए। वास्तव में राम और खुदा तो एक ही हैं। कवि के अनुसार जो राम और खुदा के चक्कर में न पड़कर प्रभु की भक्ति करता है वही सच्चे रूप में जीवित है और सच्चा तान प्राप्त 

काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।

मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।6। 

शब्दार्थ : काबा-मुसलमानों का पवित्र तीर्थ स्थान । कासी-हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल । भया-हो गया। मोट चून-मोटा आटा। बैठि-बैठकर । जीम-भोजन करना। 

भावार्थ : कवि कहता है कि मैं जब राम-रहीम, हिंदू-मुसलमान के भेद से ऊपर उठ गया तो मेरे लिए काशी तथा काबा में कोई अंतर नहीं रह गया। मन की जिस कलुषिता के कारण जिस मोटे आटे को अखाद्य समझ रहा था, अब वही बारीक मैदा हो गया, जिसे मैं आराम से खा रहा हूँ। अर्थात् मन से सांप्रदायिकता तथा भेदभाव की दुर्भावना समाप्त हो गई। 

ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।

सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ। 7। 

शब्दार्थ : ऊँचा कुल-अच्छा खानदान । जनमिया-पैदा होकर। करनी-कर्म । सुबरन-सोने का। कलस-घड़ा। सुरा-शराब। निंदा-बुराई। सोइ-उसकी। 

भावार्थ : कर्मों के महत्त्व को बताते हुए कवि कहता है कि ऊँचे कुल में जन्म लेने मात्र से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं बन जाता है। इसके लिए अच्छे कर्म करने पड़ते हैं। इसी का उदाहरण देते हुए कबीर कहते हैं कि सोने के पात्र में शराब भरी हो तो भी सज्जन उसकी निंदा ही करते हैं। 


                                                     सबद

मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।

ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।

ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।

खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।

कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।। 

शब्दार्थ : मोको-मुझको। बदे-मनुष्य। देवल-देवालय, मंदिर। काबा-मुसलमानों का तीर्थ स्थल । कैलास-कैलाश पर्वत जहाँ भगवान शिव का वास माना जाता है। कोने-किसी। क्रिया-कर्म-मनुष्य द्वारा ईश्वर की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले आडबर। योग-योग साधना। बैराग-वैराग्य। तुरते-तुरंत। मिलिहाँ-मिलेंगे। तालास-खोज। 

भावार्थ : मनुष्य जीवन-भर ईश्वर को पाने का उपाय करता है तथा नाना प्रकार की क्रियाएँ करता है, पर उसे प्रभु के दर्शन नहीं होते हैं। इसी संबंध में स्वयं निराकार बम मनुष्य से कहते हैं कि हे मनुष्य तूने मुझे कहाँ खोजा, मैं तो तुम्हारे पास में ही हूँ। मैं किसी मंदिर-मस्जिद या देवालय में नहीं रहता हूँ न किसी तीर्थ स्थान पर। मैं किसी पाखंडी क्रियाओं से भी नहीं मिल सकता। जो मुझे सच्चे मन से खोजता है उसे मैं पल भर में ही मिल सकता हूँ क्योंकि मैं तो हर प्राणी की प्रत्येक साँस में मौजूद हूँ। मुझे खोजना है तो अपने मन में खोज लो। 

संतों भाई आई ग्याँन की आँधी रे।

भ्रम की टाटी सबै उडाँनी, माया रहै न बाँधी।।

हिति चित की वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।

त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।।

जोग जुगति करि संतों बाँधी, निरचू चुवै न पाणी।

कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।। 

आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ। 

कहें कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तक खीनाँ।।

शब्दार्थ : भ्रम-संदेह। टाटी-घास फूस तथा बाँस की फट्टियों से बनाया गया आवरण। उड़ॉनी-उड़ गई। माया-मोह (रस्सी)। बाँधी-बँधकर। हिति-स्वार्थ। चित्त-मन। बै-दो। यूँनी-सहारे के लिए लगाई गई लकड़ी, टेक। गिराँनी-गिर गई। बलिंडा-मोटी बिल्ली जो छप्पर के बीचोंबीच बाँधी जाती है। तूटा-टूट गया। त्रिस्ना-तृष्णा, लालच । छाँनि-छप्पर । कुबुधि-दुर्बुद्धि। भाँडाँ-बर्तन। जोग जुगति-योग साधना के उपाय। निरचू-तनिक भी। चुबै-टपकना। निकस्या-निकल गया। जाँणी-समझ में आई। बूठा-बरसा। भीना-भीग गया। भान (भानु)-सूरज। उदित भया-निकल आया। तम-अंधकार। खीना-क्षीण या नष्ट होना। 

भावार्थ : ज्ञान का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कहा गया है कि हे संतों! ज्ञान की आँधी आ गई है। उसके प्रभावों से भ्रम का आवरण उड़ गया। वह माया की रस्सी से बँधा न रह सका। स्वार्थ के खंभे तथा मोह की बल्लियाँ टूट गईं। तृष्णा का छप्पर गिरने से कुबुद्धि के सभी बर्तन टूट गए। संतों ने योग-साधना के उपायों से नए मजबूत छप्पर को बनाया जिससे तनिक भी पानी नहीं टपकता है। जब संतों को प्रभु का मर्म पता चला तब उनका शरीर निष्कपट हो गया। इस ज्ञान रूपी आँधी के कारण प्रभु-भक्ति की जो वर्षा हुई उससे हार कोई  हरि के प्रेम में भीग गए। इस प्रकार ज्ञान के सूर्योदय से संतों के मन का अंधकार नष्ट हो गया। 

साखियाँ एवं सबद प्रश्न उत्तर Kabir Ki Sakhi Question Answer

प्रश्न 1 : ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?

उत्तर : मानसरोवर से कवि का आशय यह है कि जीव की आत्मा भी मानसरोवर रूपी प्रभु भक्ति में लीन होकर मुक्ति का आनंद उठा रहे है और इस भक्ति रूपी मानसरोवर के सुख को छोड़कर वे कहीं जाना नहीं चाहते ।


प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?

उत्तर-
कवि ने सच्चे प्रेमी की यह कसौटी बताई है कि उसका मन विकारों से दूर तथा पवित्र होता है। इस पवित्रता का असर मिलने वाले पर पड़ता है। ऐसे प्रेमी से मिलने पर मन की पवित्रता और सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
उत्तर-

इस दोहे में अनुभव से प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान को महत्त्व दिया गया है।

प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?

उत्तर-
इस संसार में सच्चा संत वही है जो जाति-धर्म, संप्रदाय आदि के भेदभाव से दूर रहता है, तर्क-वितर्क, वैर-विरोध और राम-रहीम के चक्कर में पड़े बिना प्रभु की सच्ची भक्ति करता है। ऐसा व्यक्ति ही सच्चा संत होता है।

प्रश्न 5.
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?

उत्तर-
अंतिम दो दोहों में कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है-

  1. अपने-अपने मत को श्रेष्ठ मानने की संकीर्णता और दूसरे के धर्म की निंदा करने की संकीर्णता।
  2. ऊँचे कुल के अहंकार में जीने की संकीर्णता।

प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-

किसी व्यक्ति की पहचान उसके कर्म से होती है, कुल से नहीं। कोई व्यक्ति यदि ऊँचे कुल में जन्म लेकर बुरे कर्म करता है तो वह निंदनीय होता है। इसके विपरीत यदि साधारण परिवार में जन्म लेकर कोई व्यक्ति यदि अच्छे कर्म करता है तो समाज में आदरणीय बन जाता है सूर, कबीर, तुलसी और अनेकानेक ऋषि-मुनि साधारण से परिवार में जन्मे पर अपने अच्छे कर्मों से आदरणीय बन गए। इसके विपरीत कंस, दुर्योधन, रावण आदि बुरे कर्मों के कारण निंदनीय हो गए।

प्रश्न 7.
काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भेंकन दे झख मारि।
उत्तर-

  • इसमें कवि ने एक सशक्त चित्र उपस्थित किया है। सहज साधक मस्ती से हाथी पर चढ़े हुए जा रहे हैं।
    और संसार-भर के कुत्ते भौंक-भौंककर शांत हो रहे हैं परंतु वे हाथी का कुछ बिगाड़ नहीं पा रहे। यह चित्र निंदकों पर व्यंग्य है और साधकों के लिए प्रेरणा है।
  • सांगरूपक अलंकार का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया गया है
    ज्ञान रूपी हाथी
    सहज साधना रूपी दुलीचा
    निंदक संसार रूपी श्वान
    निंदा रूपी भौंकना
  • ‘झख मारि’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग।
  • ‘स्वान रूप संसार है’ एक सशक्त उपमा है।

सबद (पद)

प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है?
उत्तर-

मनुष्य अपने धर्म-संप्रदाय और सोच-विचार के अनुसार ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, काबा, कैलाश जैसे पूजा स्थलों और धार्मिक स्थानों पर खोजता है। ईश्वर को पाने के लिए कुछ लोग योग साधना करते हैं तो कुछ सांसारिकता से दूर होकर संन्यासी-बैरागी बन जाते हैं और इन क्रियाओं के माध्यम से ईश्वर को पाने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर-

कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर ने मंदिर में है, न मसजिद में; न काबा में है, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में; वह न कर्मकांड करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से। ये सब ऊपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनमें मन लगाना व्यर्थ है।

प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में क्यों कहा है?
उत्तर-

कबीर का मानना था कि ईश्वर घट-घट में समाया है। वह प्राणी की हर साँस में समाया हुआ है। उसका वास प्राणी के मन में ही है।

प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर
-
कबीर के अनुसार, जब प्रभु ज्ञान का आवेश होता है तो उसका प्रभाव चमत्कारी होता है। उससे पूरी जीवन शैली बदल जाती है। सांसारिक बंधन पूरी तरह कट जाते हैं। यह परिवर्तन धीरे-धीरे नहीं होता, बल्कि एकाएक और पूरे वेग से होता है। इसलिए उसकी तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से की गई है।


प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर

ज्ञान की आँधी आने से भक्त के जीवन पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं-

  • भक्त के मन पर छाया अज्ञानता का भ्रम दूर हो जाता है।
  • भक्त के मन का कूड़ा-करकट (लोभ-लालच आदि) निकल जाता है।
  • मन में प्रभु भक्ति का भाव जगता है।
  • भक्त का जीवन भक्ति के आनंद में डूब जाता है।

प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) हिति चित्त की वै श्रृंनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
(ख) आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीनाँ।
उत्तर-

इसका भाव यह है कि ईश्वरीय ज्ञान हो जाने के बाद प्रभु-प्रेम के आनंद की वर्षा हुई। उस आनंद में भक्त का हृदय पूरी तरह सराबोर हो गया।


इस पोस्ट के माध्यम से हम क्षितिज भाग 1 कक्षा-9 पाठ-9 (NCERT Solution for class-9 kshitij bhag-1 chapter – 9) कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) काव्य खंड (Kabir Das ki Sakhi and Sabad) के भावार्थ के बारे में जाने । उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का प्रश्न हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर नए पोस्ट कि Notification मिलते रहे।



Comments

Popular posts from this blog

The Lost Child Extra Questions and Answers Class 9 English

Factorisation Class 8 Extra Questions Maths Chapter 14 / VERY IMPORTANT FOR STUDENTS FOR PRACTICE

CBSE CLASS 10 BOARD 2024 ALL IMPORTANT QUESTIONS