CBSE CLASS 10 BOARD 2024 ALL IMPORTANT QUESTIONS

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CBSE  CLASS 10   BOARD  2024 ALL IMPORTANT  QUESTIONS  COVERS ALL TOPICS .PRACTICE AND GET FUL MARKS   CBSE Class 10 English Grammar Important MCQs - Gap Filling Choose the correct options to fill in the blanks to complete the note about the wangala Festival of Meghalaya.  1. The Wangala (i) __________ festival for the Garo in Meghalaya, Assam and Nagaland. It is a postharvest festival (ii) __________ the end of the agricultural year. It is popularly known as ‘The Hundred Drums’ festival. During the signature dance, the leading warrior (iii) __________ with synchronised 7 dance steps and specific hand-head movements.  (i) (a) is important  ( b) are an important  (c) was the important  (d) is an important  (ii) (a) being celebrated for marking ( b) celebrated to mark ( c) celebrate to mark  (d) being celebrated for mark  (iii) (a) leads the youngsters ( b) lead the youngsters ( c) was leading the youngsters  ...

IMPORTANT ESSAY FOR CLASS 10 CBSE BOARD ,ICSE IN HINDI

                               CLASS 10 AND CLASS 12

                   CBSE BOARD TERM 2                                        ESSAY FOR ALL CLASSES

                                                 

                                                  समय अनमोल है।

या

समय का सदुपयोग

समय चक्र की गति बड़ी अदभुद है। इसकी गति में अबादता है। समय का चक्र निरंतर गतिशील रहता है रुकना इसका धर्म नहीं है।

“मैं समय हूँ
मैं किसी की प्रतीक्षा नहीं करता
में निरंतर गतिशील हूँ
मेरा बिता हुआ एक भी क्षण लौट कर नहीं आता है।
जिसने भी मेरा निरादर किया
वह हाथ मल्ता रह जाता है।
सिर धुन- धुन कर पछताता है। “

समय के बारे में कवि की उपयुर्क्त पंक्तियाँ सत्य है विश्व में समय सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान धन माना गया है। यदि मनुष्य की अन्य धन सम्पति नष्ट हो जाए तो संभव है वह परिश्रम, प्रयत्न एवं संघर्ष से पुनः प्राप्त कर सकता है किन्तु बीता हुआ समय वापस नहीं आता। इसी कारण समय को सर्वाधिक मूल्यवान धन मानकर उसका सदुपयोग करने की बात कही जाती है।

समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। वह निरंतर गतिशील रहता है कुछ लोग यह कहकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं कि समय आया नहीं करता वह तो निरंतर जाता रहता है और सरपट भागा जा रहा है। हम निरंतर कर्म करते रहकर ही उसे अच्छा बना सकते हैं। अच्छे कर्म करके, स्वयं अच्छे रहकर ही समय को अच्छा, अपने लिए प्रगतिशील एवं सौभाग्यशाली बनाया जा सकता है। उसके सिवाय अन्य कोई गति नहीं। अन्य सभी बातें तो समय को व्यर्थ गंवाने वाली ही हुआ करती हैं। और बुरे कर्म तथा बुरे व्यवहार अच्छे समय को भी बुरा बना दिया करे हैं।

समय के सदुपयोग में ही जीवन की सफलता का रहस्य निहित है जो व्यक्ति समय का चक्र पहचान कर उचित ढंग से कार्य करें तो उसकी उन्नति में चार चाँद लग सकता हैं। कहते हैं हर आदमी के जीवन में एक क्षण या समय अवश्यक आया करता है कि व्यक्ति उसे पहचान – परख कर उस समय कार्य आरम्भ करें तो कोई कारण नहीं कि उसे सफलता न मिल पाए। समय का सदुपयोग करने का अधिकार सभी को समान रूप से मिला है। किसी का इस पर एकाधिकार नहीं है। संसार में जितने महापुरुष हुए हैं वे सभी समय के सदुपयोग करने के कारण ही उस मुकाम पर पहुंच सके है। काम को समय पर संपन्न करना ही सफलता का रहस्य है।

लोक – जीवन में कहावत प्रचलित है कि पलभर का चूका आदमी कोसों पिछड़ जाया करता है। उस उचित पथ को पहचान समय पर चल देने वाला आदमी अपनी मंजिल भी उचित एवं निश्चित रूप से पा लिया करता है। स्पष्ट है की जो चलेगा वो तो कहीं न कहीं पहुंच पायेगा। न चलने वाला मंजिल पाने के मात्र सपने ही देख सकता है , व्यवहार के स्तर पर उसकी परछाई का स्पर्श नहीं कर सकता। अतः तत्काल आरम्भ कर देना चाहिए। आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। अपने कर्तव्य धर्म को करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। कोई कार्य छोटा हो या बड़ा यह भी नहीं सोचना चाहिए। वास्तव में कोई काम छोटा या बड़ा नहीं हुआ करता है। अच्छा और सावधान मनुष्य अपनी अच्छी नीयत, सद्व्यवहार और समय के सदुपयोग से छोटे या सामान्य कार्य को भी बड़ा और विशेष बना दिया करता है।

विश्व के आरम्भ से लेकर आज तक के मानव जो निरंतर रच रहा है, वह सब समय के सदुपयोग के ही संभव हुआ और हो रहा है। यदि महान  कार्य करके नाम यश पाने वाले लोग आज भी आज – कल करते हुए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते तो जो सुख आनंद के तरह – तरह के साधन उपलब्ध हैं वे कतई और कभी न हो पाते। मनुष्य और पशु में यही तो वास्तविक अंतर और पहचान है कि मनुष्य समय को पहचान उसका सदुपयोग करना जनता है , जबकि पशु – पक्षियों के पास ऐसी पहचान – परक और कार्य शक्ति नहीं रहा करती।

मानव जीवन नहीं के एक धरा के सामान है जिस प्रकार नदी की धरा अबाध कटी से प्रवाहित होती रहती है ढीक उसी प्रकार मानव – जीवन की धरा भी अनेक उतर – चढ़ावों के गुजरती हुई गतिशील रहती है। प्रकर्ति का कण – कण हमें समय पालन की सीख देता है। अतः मनुष्य का कर्तव्य है जो बीत गया उसका रोना न रोये अर्थात वर्तमान और भविष्य का ध्यान करें इसलिए कहा है – ‘ बीती ताहि बिसर दे आगे की सुधि लेई ‘

एक – एक सांस लेने का अर्थ है समय की एक अंश कम हो जाना जीवन का कुछ छोटा होना और मृत्यु की और एक – एक कदम बढ़ाते जाना। पता नहीं कब समय समाप्त हो जाये और मृत्यु आकर साँसों का अमूल्य खजाना समेत ले जाये। इसलिए महापुरुषों ने इस तथ्य को अच्छी तरह समझकर एक सांस या एक पल को न गवाने की बात कही है। संत कबीर का यह दोहा समय के सदुपयोग का महत्व प्रतिपादित करने वाला है।

” काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल मैं परले होयेगी, बहुरि करोगे कब। “


                                       2.शिक्षा में खेल कूद और व्यायाम

अगर हमें समृद्ध राष्ट्र बनाना है तो हमें उसके लिए एक स्वस्थ्य नींव तैयार करनी पड़ेगी। साथ ही यह भी सच है कि स्वस्थ्य मानव के लिए केवल मस्तिष्क का विकास ही काफी नहीं है, साथ ही साथ उसे अपने शरीर के विकास की भी आवश्यकता है जोकि केवल खेल कूद और व्यायाम के माध्यम से ही हो सकती है।

अगर हम चाहते हैं कि आने वाले समय में हमारा राष्ट्र मजबूत व शक्तिशाली हो तो इसके लिए हमें अभी से मेहनत करनी पड़ेगी और हमारे युवाओं में पढ़ाई के साथ साथ उन्हें खेल-कूद व व्यायाम की उपयोगिता भी बतलाते हुए उन्हें भावी समय के लिए जागरूक करना पड़ेगा।

शिक्षा का मानव जीवन में जितना महत्व है, उतना ही खेल-कूद व व्यायाम का भी है। हम यह कह सकते हैं कि बिना शारीरिक शिक्षा के हमारी शिक्षा अनुपयोगी है। केवल रात दिन किताबों में दृष्टि गढ़ाए रखने से विद्यार्थी जीवन सफल नहीं हो सकता है। शक्ति के अभाव में अन्य सभी गुण व्यर्थ हैं।

जो क्रिया हमारे शरीर को ओजस्वी, पुष्ट, मजबूत एव मन को प्रसन्न बनाते हैं उसे हम खेलकूद कह सकते हैं। जिस क्रिया से हमारे अंदर फूर्तिला पन रहे उसे हम व्यायाम कह सकते हैं। जिस तरह खेलों के कई प्रकार होते हैं उसी प्रकार व्यायामों के भी कई प्रकार होते हैं। जिन्हें अपनाने से हमारे शरीर में रक्त संचार होता है और जिससे हमारे शरीर को मजबूती मिलती है।

शिक्षा जिस प्रकार मानव को ज्ञानी बनाती है, खेल-कूद व व्यायाम उसे शक्ति देते हैं कि वह ज्ञानी बन सके। किसी महापुरुष ने सच ही कहा है कि अगर इंसान का पैसा लुट जाए तो कोई बात नहीं वह पुनः कमा लेगा मगर अगर उसके स्वास्थ्य में या फिर ज्ञान में कोई कमी रह जाए तो यह सोचने का विषय है।

स्वस्थ्य शरीर ही मन का आधार होता है, इस संबंध में एक कहावत भी प्रसिद्ध हुई है- तन स्वस्थ तो मन स्वस्थ्य। अगर कमजोर व्यक्ति होगा तो वह क्या खाक़ पढ़ेगा।

शरीर के स्वस्थ होने पर ही मन भी स्वस्थ व विस्तार से ज्ञान ग्रहण करने के लायक बन सकता है।

हाल ही के सर्वेक्षण में देखा गया है कि शरीर से कमजोर व्यक्तिकई रोगों से ग्रस्त होने के साथ साथ मानसिक रूप से चिड़चिड़े भी होते हैं। जो भी पढ़ते या याद करते हैं शीघ्र ही भूल भी जाते हैं। अतः वह शिक्षा में पीछे रह जाते हैं।

खेल-कूद व व्यायाम एक प्रकार के हैल्थ कैप्सूल हैं।

किसी अंग्रेज ने सच ही कहा था कि – धन लूटे तो कुछ हुआ पर स्वस्थ बिगड़े तो बहुत कुछ हुआ।

देखा गया है कि घर में अक्सर शतरंज, कैरम, लूडो आदि खेल मानसिक तौर पर लाभदायक होते हैं। वहीं अगर हम सुबह सुबह उठ कर एक आदव्यायाम भी कर ले तो सोने पे सुहागा।

तरह तरह के खेल भी व्यायाम के ही अंतर्गत आ जाते हैं। अगर किसी भी व्यायाम के बाद शरीर पर तेल की मालिश कर ली जाए तो अच्छे स्वस्थ के हम धनी बन जाएंगे।

आलस्य मनुष्य के शरीर का सबसे बड़ा दुश्मन है। जो कि मनुष्य को कमजोर बना देता है। बुद्धि मंद कर डालता है। व्यायाम से मनुष्य अपने आलस को दूर कर कुछ देर विश्राम करके कोई भी खेल खेल कर अपने आप का मनोरंजन कर सकता |

आधुनिकता के इस जीवन में शिक्षा के साथ साथ खेल व व्यायाम के महत्व को स्वीकार कर लिया गया है। स्कूल, कॉलेज एवं महाविद्यालयों में खेल सामग्री उपलब्ध करा दी गई है। साथ ही आज-कल बड़े-बड़े नगरों, महानगरों में जगह जगह सरकारी तथा व्यक्तिगत जीम व प्ले स्टेशन भी खुल गए हैं। जहाँ विभिन्न प्रकार के उपकरणों तथा यंत्रों से व्यायाम भी करवाया जाता है और विभिन्न खेल भी खेले जा

 कोरोना काल और ऑनलाइन पढ़ाई पर अनुच्छेद                               लेखन ​

कोरोना के कारण शिक्षा की स्थिति स्वयं संक्रमण के दौर से गुजर रही है। कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिये विद्यालय लंबे समय से बंद हैं। इस कारण विद्यार्थियों को अपने घर पर बैठकर ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से पढ़ाई करनी पड़ रही है। विद्यार्थी के लिए शैक्षणिक माहौल होना बेहद आवश्यक होता है। केवल पुस्तकें पढ़ने से ही शिक्षा प्राप्त नहीं होती बल्कि आसपास का परिवेश भी शिक्षा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विद्यालय में शैक्षणिक वातावरण बनता है, जिससे विद्यार्थी को सीखने में आसानी होती है। घर पर बैठकर ऑनलाइन पढ़ाई करने और पुस्तकें पढ़ने से विद्यार्थियों को बहुत सी बातें समझ नहीं आ पाती और उसकी हर शंका सा समाधान नही हो पाता क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा की अपनी सीमायें हैं।

विद्यालय में विद्यार्थी अपने सहपाठियों के साथ मिलकर पढ़ाई करता है तो उसे पढ़ाई में आनंद आता है, इस कारण जब विद्यार्थी निरंतर घर पर बैठकर पढ़ाई कर रहा है तो उसे पढ़ाई अरूचिकर लगने लगती है। विद्यार्थियों में अनुशासन की भी कमी आई है, क्योंकि अब उन्हें नियमित रूप से विद्यालय नहीं जाना पड़ रहा है, इससे उनकी शारीरिक गतिविधियां भी स्थिर हो गई हैं, जो कि उनके मानसिक विकास के लिये जरूरी हैं। अतः कह सकते हैं कि कोरोना के परिवेश में शिक्षा की स्थिति फिलहाल डावांडोल है, जब तक सारी स्थिति सामान्य नहीं होगी, और विद्यालय नियमित रूप से नही खुलेंगे तब विद्यार्थियों का भला नही होगा।


ऑनलाइन क्लास के फायदे और नुकसान

हर चीज के दो पहलू होते हैं। ये ऑनलाइन क्लासेज जहां बच्चों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है, वही इसके कुछ नुकसान भी सामने आ रहे हैं। बच्चों को कोचिंग के लिए नहीं जाना पड़ रहा है एवं आने-जाने का समय भी बच रहा है तो वहीं ऑनलाइन क्लासेज के दौरान बच्चे अपने टीचर्स के साथ ठीक से इंटरेक्ट नहीं कर पा रहे हैं। साथ ही बच्चे अपने घर में स्कूल जैसा वातावरण नहीं मिलने से स्ट्रेस में हैं।


ऑनलाइन क्लास को लेकर क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?

मनोचिकित्सकों का मानना है कि ऐसे समय में माता-पिता को अधिक से अधिक समय अपने बच्चों को देना चाहिए। बच्चों में सकारात्मक भाव बना रहे, इसलिए लॉकडाउन के जल्द समाप्त होने की बात कहकर उन्हें समझाना चाहिए।

मनोचिकित्सक तृप्ति ईशा बताती हैं कि ऑनलाइन स्कूलिंग शुरू करने के लिए बहुत शाबाशी दी जानी चाहिए, क्योंकि यह इतना आसान कदम नहीं है। साथ ही साथ इसके बहुत से प्रभाव भी पड़ते हैं। इसके बावजूद आज बच्चे घर में बैठे हुए ही ऑनलाइन स्कूलिंग कर रहे हैं। ऐसे में माता-पिता को अपने बच्चों को शाबाशी देते रहना चाहिए। ऐसी स्थिति में बच्चों को ज्यादा प्रेशराइज न करें तो बेहतर होगा।

दरअसल, जब शुरुआत में स्कूल बंद हुए तो यह नहीं पता था कि कैसे पढ़ाना है और न ही स्कूलों के पास संसाधन मौजूद थे। वहीं शिक्षक भी ऑनलाइन शिक्षा देने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे, लेकिन आज इन सभी समस्याओं से पार पाने का प्रयास संस्थानों का प्रबंधन कर पाने में सक्षम हो पा रहा है। इस प्रकार से तमाम चुनौतियों के बावजूद स्कूली बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज जारी हैं।


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