CBSE CLASS 10 BOARD 2024 ALL IMPORTANT QUESTIONS

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नात्सीवाद और हिटलर का उदय
जर्मनी ने ऑस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ और मित्र राष्ट्रों (इंग्लैंड, फ्रांस और रूस) के खिलाफ प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) लड़ा ।
जर्मनी ने शुरू में फ्रांस और बेल्जियम पर कब्जा करके लाभ कमाया । हालाँकि, मित्र राष्ट्रों ने 1918 में जर्मनी और केंद्रीय शक्तियों को हराकर जीत हासिल की ।
वीमर में एक नेशनल असेंबली की बैठक हुई और एक संघीय ढांचे के साथ एक लोकतांत्रिक संविधान की स्थापना की ।
जून 1919 में वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसमें जर्मनी के ऊपर मित्र शक्तियों ने कई अपमानजनक शर्तें थोपी जैसे :-
वाइमर गणराज्य के सामने आई समस्याएँ :-
वाइमर संधि :-
वर्साय में हुई शांति – संधि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश , तकरीबन 10 प्रतिशत आबादी , 13 प्रतिशत भूभाग , 75 प्रतिशत लौह भंडार और 26 प्रतिशत कोयला भंडार फ्रांस , पोलैंड , डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े ।
मित्र राष्टों ने उसकी सेना भी भंग कर दी । यद्ध अपराधबोध अनुच्छेद के तहत युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को ज़िम्मेदार ठहराकर उस पर छः अरब पौंड का जुर्माना लगाया गया । खनिज संसाधनों वाले राईनलैंड पर भी बीस के दशक में ज़्यादातर मित्र राष्ट्रों का ही क़ब्ज़ा रहा ।
आर्थिक संकट :-
युद्ध में डूबे हुए ऋणों के कारण जर्मन राज्य आर्थिक रूप से अपंग हो गया था जिसका भुगतान सोने में किया जाना था । इसके बाद , सोने के भंडार में कमी आई और जर्मन निशान का मूल्य गिर गया । आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगीं ।
राजनीतिक संकट :-
राष्ट्रीय सभा द्वारा वाडमर गणराज्य का विकास तथा सुरक्षा के रास्ते पर लाने के लिए एक नये जनतांत्रिक संविधान का निर्माण किया गया , किन्तु यह अपने उद्देश्य में असफल रहा । संविधान में बहुत सारी कमजोरियाँ थीं । आनुपातिक प्रतिनिधित्व संबंधी नियमों तथा अनुच्छेद 48 के कारण एक राजनीतिक संकट पैदा हुआ जिसने तानाशाही शासन का रास्ता खोल दिया ।
युद्ध के प्रभाव :-
राजनीतिक रैडिकलवाद और आर्थिक संकट :-
राजनीतिक रैडिकलवादी विचारों को 1923 के आर्थिक संकट से और बल मिला जर्मनी ने पहला विश्वयुद्ध मोटे तौर पर कर्ज लेकर लड़ा था ।
युद्ध के बाद तो उसे स्वर्ण मुद्रा में हर्जाना भी भरना पड़ा । इस दोहरे बोझ से जर्मनी के स्वर्ण भंडार लगभग खत्म होने की स्थिति में पहुंच गए थे ।
आखिरकार 1923 में जर्मनी ने कर्ज और हर्जाना चुकाने से इंकार कर दिया । इसका जवाब में फ्रांसीसियों ने जर्मनी के मुख्य औद्योगिक इलाके रूर पर कब्जा कर लिया ।
यह जर्मनी के विशाल कोयला भंडारों वाला इलाका था । जर्मन सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा छाप दी की उसकी मुद्रा मार्क का मूल्य तेजी से गिरने लगा ।
अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24,000 मार्क के बराबर थी । जो जुलाई में 3,53,000 मार्क और अगस्त में 46,21,000 मार्क तथा दिसंबर में 9,88,60,000 मार्क हो गई ।
अति – मुद्रास्फीति :-
जैसे – जैसे मार्क की कीमत गिरती गई , जरूरी चीजों की कीमत आसमान छूने लगी जर्मन समाज दुनिया भर में हमदर्दी का पात्र बनकर रह गया इस संकट को बाद में अति – मुद्रास्फीति का नाम दिया गया । जब कीमतें बेहिसाब बढ़ जाती है तो उस स्थिति को अति मुद्रास्फीति का नाम दिया जाता है ।
मंदी के साल :-
नात्सीवाद :-
यह एक सम्पूर्ण व्यवस्था और विचारों की पूरी संरचना का नाम है । जिसका जनक हिटलर को माना जाता है । जर्मन साम्राज्य में यह एक विचारधारा की तरह फ़ैल गई थी जो खास तरह की मूल्य – मान्यताओं , एक खास तरह के व्यवहार सम्बंधित था ।
नाजीयों का विश्व दृष्टिकोण :-
जर्मनी में हिटलर के उदय के कारण :-
हिटलर का उदय :-
हिटलर की राजनैतिक शैली :-
जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता :-
1929 के बाद बैंक दिवालिया हो चुके , काम धंधे बंद होते जा रहे थे , मजदुर बेरोजगार हो रहे थे और मध्यवर्ग को लाचारी और भुखमरी का डर सता रहा था ।
नात्सी प्रोपेगैंडा में लोगों को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाई देती थी । धीरे – धीरे नात्सीवाद एक जन आन्दोलन का रूप लेता गया और जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता मिलने लगी ।
हिटलर एक जबरदस्त वक्ता था । उसका जोश और उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे । वह अपने भाषणों में एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना , वर्साय संधि में हुई नाइंसाफी जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का आश्वासन देता था ।
उसका वादा था कि वह बेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा । उसने आश्वासन दिया कि वह देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराएगा और तमाम विदेशी ‘ साशिशों ‘ का मुँहतोड़ जवाब देगा ।
नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण करने के तरीके :-
हिटलर ने राजनीति की एक नई शैली रची थी । वह लोगों को गोलबंद करने के लिए आडंबर और प्रदर्शन की अहमियत समझता था ।
हिटलर के प्रति भारी समर्थन दर्शाने और लोगों में परस्पर एकता का भाव पैदा करने के लिए नात्सियों ने बड़ी – बड़ी रैलियाँ और जनसभाएँ आयोजित कीं ।
स्वस्तिक छपे लाल झंडे , नात्सी सैल्यूट और भाषणों के बाद खास अंदाज में तालियों की गड़गड़ाहट।ये सारी चीजे शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा थीं ।
नात्सियों ने अपने धूआँधार प्रचार के जरिये हिटलर को एक मसीहा , एक रक्षक , एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश किया , जिसने मानो जनता को तबाही से उबारने के लिए ही अवतार लिया था ।
एक ऐसे समाज को यह छवि बेहद आकर्षक दिखाई देती थी जिसकी प्रतिष्ठा और गर्व का अहसास चकनाचूर हो चुका था और जो एक भीषण आर्थिक एवं राजनीतिक संकट से गुजर रहा था ।
लोकतंत्र का ध्वंस :-
30 जनवरी 1933 को राष्ट्रपति हिंडनबर्ग ने हिटलर को चांसलर का पदभार संभालने का न्योता दिया यह मंत्रिमंडल में सबसे शक्तिशाली पद था सत्ता हासिल करने के बाद हिटलर ने लोकतांत्रिक शासन की संरचना और संस्थाओं को भंग करना शुरू कर दिया ।
फरवरी महीने में जर्मन संसद भवन में हुए रहस्यमय अग्निकांड से उसका रास्ता और आसान हो गया । इसके बाद हिटलर ने अपने कट्टर शत्रु कम्युनिस्टो पर निशाना साधा ज्यादातर कम्युनिस्टों को रातो रात कंस्ट्रक्शन कैंपों में बंद कर दिया गया ।
मार्च 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम ( इनेबलिंग एक्ट ) पारित किया गया । इस कानून के जरिए जर्मनी में बाकायदा तानाशाह स्थापित कर दी गई । नात्सी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों पर पाबंदी लगा दी गई ।
किसी को भी बिना कानूनी कार्रवाई के देश से निकाला जा सकता था या गिरफ्तार किया जा सकता था ।
द्वितीय विश्व युद्ध का अंत :-
जब द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका कूद पड़ा । तो धूरी राष्ट्रों को घुटने टेकने पड़े , इसके साथ ही हिटलर की पराजय हुआ और जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर अमेरिका के बम गिराने के साथ द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हो गया ।
नात्सी जर्मनी में युवाओं की स्थिति :-
महिलाओं की स्थिति :-
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